tag:blogger.com,1999:blog-6270812340240752902024-02-20T04:15:55.931-08:00meri udaana.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.comBlogger51125tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-25146830117763030182011-11-09T09:07:00.000-08:002011-11-09T09:08:14.723-08:00बाजारवादबाजारवाद --<br />मैंने कहा<br />भारतीय संस्कृति मे<br />बेटी के घर का खाना<br />उचित नहीं माना जाता,<br />हमारी परम्परा<br />बहन ,बेटी को देने की है<br />उनसे कुछ भी लेने की नहीं|<br /><br />लोगों ऩे मुझे पढ़ा,सुना और<br />अतीत की दिवार पर चस्पा कर दिया,<br />मुझे भारी जवानी मे<br />बूढ़ा करार दे दिया गया|<br />बाजारवाद के इस दौर मे<br />सभ्यता और संस्कृति के<br />शाश्वत नियमों का उल्लंघन,<br />अंतहीन,प्रयोजन रहित<br />बहस करना<br />वर्तमान बता दिया|<br />और<br />एक नई बहस को जन्म दिया<br />कि नारी<br />मात्र वस्तु है,भोग्य है<br />तथा<br />उसे विज्ञापन बना दिया,<br />घर,दफ्तर से<br />दिवार पर लगे पोस्टर तक|<br />और नारी खुश हो गई<br />पैसों कि चमक मे| <br />शायद<br />इन आधुनिक बाजारवादी लोगों के लिए<br />कल बहन और बेटी भी<br />वस्तु / विज्ञापन<br />या भोग्य बन जायेंगी<br />यही इनका भविष्य होगा|<br />और हम<br />काल के गर्त मे समाकर<br />प्राचीन असभ्य युग मे<br />वापस आ जायेंगे |<br /><br />सच ही तो है<br />इतिहास स्वयं को दोहराता है |<br />स्रष्टि के विकास क्रम मे<br />मनुष्य नंगा रहता था,<br />आज हम पुनः<br />बाजारवाद की दौड़ मे<br />सभ्यता को छोड़कर<br />नग्नता की और बढ़ रहे हैं,<br />मन से भी और तन से भी |<br />प्राचीन कबीलाई संस्कृति को<br />पुनः अपना रहे हैं,<br />जातिवाद,क्षेत्रवाद व धर्मवाद के<br />नए कबीले<br />तैयार किये जा रहे हैं|<br /><br />असभ्य मानव<br />अज्ञानवश पशुओं को खाता था<br />आज बाजारवाद मे<br />प्रायोजित तरीकों से<br />पशु-पक्षियों को<br />खादय बताया जा रहा है,<br />जिसके कारण<br />अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गयी<br />कुछ होने के कगार पर हैं,<br />मगर हम सभ्य हैं,<br />बाज़ार की भाषा मे<br />विकास कर रहे हैं,<br />जंगलों को काटकर<br />मकान तथा<br />अस्त्र शस्त्र निर्माण कर रहे हैं|<br />अब हैजे या प्लेग जैसी<br />बीमारी की जरुरत नहीं,<br />सिर्फ एक बम ही काफी है<br />लाखों लोग नींद मे सो जायेंगे, <br />उनके संसाधनों पर<br />हम कब्ज़ा जमायेंगे|<br /><br />यही तो होता था,<br />कबीलों मे भी<br />जिसने जीता<br />स्त्री,पुरुष,धन संपत्ति<br />सब उसकी<br />और आज भी यही होता है<br />जंगल के राजा<br />शेर के व्यवहार मे<br />बंदरों के संसार मे,<br />और<br />इन आधुनिकों के<br />उन्मुक्त विचार मे,घर,व्यापार मे|<br /><br />हम<br />सुनहरे कल की और बढ़ रहे हैं,<br />वह सुनहरा कल<br />जिसका आधार<br />बीता हुआ कल है,<br />जिसका वर्तमान<br />लंगड़ा व अँधा है,<br />जिसका भविष्य<br />अंधकारमय है,<br />और<br />जो स्थिर होना चाहता है<br />बाजारवाद के<br />खोखले कन्धों पर |<br /><br />तमसों माँ ज्योतिर्गमय |<br /><br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />9911323732a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-8179741629535679792011-06-25T21:15:00.001-07:002011-06-25T21:15:35.224-07:00मेरा देश भारतभारत<br />-----------------------------<br />कण-कण में जहाँ शंकर बसते,बूँद-बूँद मे गंगा,<br />जिसकी विजय गाथा गाता,विश्व विजयी तिरंगा|<br />सागर जिसके चरण पखारे,और मुकुट हिमालय,<br />जन-जन में मानवता बसती,हर मन निर्मल,चंगा|<br />वृक्ष धरा के आभूषण,और रज जहाँ कि चन्दन,<br />बच्चा-बच्चा राम-कृष्ण सा,बहती ज्ञान कि गंगा|<br />विश्व को दिशा दिखाती,जिसकी,आज भी वेद ऋचाएं,<br />कर्मयोग प्रधान बना,गीता का सन्देश है चंगा|<br />'अहिंसा तथा शांति' मंत्र, जहाँ धर्म के मार्ग,<br />त्याग कि पराकाष्ठा होती,जिसे कहते 'महावीर'सा नंगा|<br />भूत-प्रेत और अंध विश्वाश का,देश बताते पश्छिम वाले,<br />फिर भी हम है विश्व गुरु,अध्यातम सन्देश है चंगा|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-59965953004575782482011-06-09T03:16:00.001-07:002011-06-09T03:16:22.393-07:00लोगलोग <br /><br />अक्सर हमसे डरते लोग,<br />महज दिखावा करते लोग|<br />हम भी यह सब खूब समझते,<br />चापलूसी क्यों करते लोग|<br />वो हैं चोरों के सरदार,<br />कहने से क्यों डरते लोग|<br />सफ़ेद भेडिये खुले घूमते,<br />क्यों नहीं उन्हें पकड़ते लोग|<br />कहते हैं सब बेईमान,<br />क्यों नहीं उन्हें बदलते लोग|<br />अबकी बार चुनाव होगा,<br />फिर से उन्हें चुनेंगे लोग|<br />लूट रहे जो अपने देश को,<br />कहते देश भक्त हैं लोग|<br />जन्म दिया और बड़ा किया<br />घर के बाहर खड़े क्यों लोग?<br />मात पिता जीवित भगवान<br />क्यों नहीं सार समझते लोग?<br />माँ-बाप कि कदर न करते<br />मरे हुए से बदतर लोग|<br />जीवन,मरण,लाभ,यश,हानि<br />कर्मो का फल कहते लोग|<br />मानवता कि राह चले जो<br />अक्सर दुखिया रहते लोग|<br />भ्रष्ट-बेईमान क्यों कर फूले<br />बतला दो तुम ज्ञानी लोग |<br />साँसों कि गिनती है सिमित<br />बतलाते हैं साधू लोग|<br />तेरा मेरा करते लड़ते<br />जीवन व्यर्थ गंवाते लोग|<br />आज भी हम हैं विश्व गुरु<br />क्यों नहीं बात समझते लोग?<br />भारत सदा ज्ञान का केंद्र<br />कहते हैं दुनिया के लोग|<br />ज्ञान कि भाषा कहाँ खो गई<br />ढूंढ रहे हैं ज्ञानी लोग?<br />अंग्रेजी को महान बताते <br />मेरे अपने घर के लोग|<br />सबसे बड़ा बन गया रुपैया<br />ऐसा कहते ज्यादा लोग|<br />फिर भी धनी दुखी क्यों रहता <br />समझाते नहीं सयाने लोग|<br />देश ऩे हमको दिया है सब कुछ<br />क्यों नहीं गर्व समझते लोग?<br />लूट रहे जो अपने देश को<br />सचमुच बड़े कमीने लोग|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />kirtivardhan.blogspot.com<br />a.kirtivardhan@gmail.com<br />box.net/kirtivardhan<br />09911323732a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-17496559456867358762011-05-21T19:23:00.001-07:002011-05-21T19:23:32.853-07:00मुखौटों की दुनियामुखौटों कि दुनिया <br />मुखौटों कि दुनिया मे रहता है आदमी,<br />मुखौटों पर मुखौटें लगता है आदमी|<br />बार बार बदलकर देखता है मुखौटा,<br />फिर नया मुखौटा लगता है आदमी|<br />मुखौटों के खेल मे माहिर है आदमी,<br />गिरगिट को भी रंग दिखाता है आदमी|<br />शैतान भी लगाकर इंसानियत का मुखौटा,<br />आदमी को छलने को तैयार है आदमी|<br />मजहब के ठेकेदार भी अब लगाते है मुखौटे<br />देते हैं पैगाम,बस मरता है आदमी|<br />लगाने लगे मुखौटे जब देश के नेता,<br />मुखौटों के जाल मे,फंस गया आदमी|<br />जाति,धर्म का जब लगाया मुखौटा,<br />आदमी का दुश्मन बन गया है आदमी|<br />देखकर नेताओं का मुखौटा अनोखा,<br />हैरान और परेशान रह गया है आदमी|<br />कभी भूल जाता है मुखौटा बदलना आदमी<br />शै और मात मे फंस जाता है आदमी|<br />मुखौटों के खेल मे इतना उलझ गया आदमी<br />खुद की ही पहचान भूल गया है आदमी|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />9911323732<br />a.kirtivardhan@gmail.com<br />kirtivardhan.blogspot.coma.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-26949728287347007822011-05-21T19:22:00.001-07:002011-05-21T19:22:54.188-07:00मुखौटों की दुनियाa.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-90979123314390355272011-05-05T21:45:00.001-07:002011-05-05T21:45:58.368-07:00शब्दों में-------शब्दों में ------<br />मैंने शब्दों में<br />भगवान को देखा<br />शैतान को देखा<br />आदमी तो बहुत देखे<br />पर<br />इंसान कोई कोई देखा।<br />इन्ही शब्दों में<br />मैंने प्यार को देखा<br />कदम कदम पर अंहकार भी देखा<br />धर्मात्मा तो बहुत देखे<br />पर<br />मानवता की खातिर<br />मददगार कोई कोई देखा।<br /><br />इन्ही शब्दों में<br />मैंने चाह देखी<br />भगवान् पाने की<br />बुलंदियों पर जाने की<br />गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे<br />पर गिरते को उठाने वाला<br />कोई कोई देखा।<br />इन्ही शब्दों में<br />भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा<br />नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा<br />पर निर्लजता पर चोट करते<br />कोई कोई देखा।<br />इन्हीशब्दों में<br />कामना करता हूँ ईश्वर से<br />मुझे शक्ति दे<br />लेखनी मेरी चलती रहे<br />पर पीडा में लिखती रहे<br />पाप का भागी मैं बनूँ<br />यश का भागी ईश्वर रहे.<br /><br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />09911323732 <br />a.kirtivardhan@gmail.com<br />kirtivardhan.blogspot.coma.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-14767619732123286482011-04-30T10:37:00.001-07:002011-04-30T10:37:42.712-07:00mahabharatमहाभारत <br />एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया |<br />युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे<br />द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.|<br />अनैतिकता के सामने नैतिकता का<br />ध्वज फिर तार तार हो गया|<br />भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके<br />सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया|<br />ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है<br />गुरु द्रोण नि: शब्द हैं, सत्ता से उनकी यारी है|<br />संजय नीति के ज्ञाता हैं, उनको निष्ठां प्यारी है<br />कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है|<br />चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए<br />अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे|<br />दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया<br />अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया|<br />शकुनी की कुटिल चालों से<br />सभी पांडव त्रस्त हैं|<br />कृष्ण की चालाकियां भी<br />अब मानो नि: शस्त्र है|<br /><br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२<br />kirtivardhan.blogspot,com<br />box.net/kirtivardhana.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-18511143741124001362011-04-29T03:24:00.001-07:002011-04-29T03:24:47.055-07:00samacharजतन से ओढी चदरिया पर परिच्रर्चा आयोजित<br />नई दिल्ली- लाल, कला सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच के तत्वाधान में डा. ए. कीर्तिबर्धन द्वारा बुजूर्गो की दशा एवं दिशा पर आधारित,संपादित ग्रन्थ जतन से ओढी चदरिया पर एक परिचर्चा का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान ,स्कूल रोड ,मीठापुर (नियर संतोषी माता मंदिर) ,बदरपुर, नई दिल्ली में आयोजित किया गया । जिसका उदधाट्न स्थानीय निगम पार्षद महेश आवाना एवं श्री राज कुमार अग्रवाल(संपादकः हमारा मेट्रो) द्वारा संयुक्त रुप से किया गया। इसका संचालन बरिष्ठ साहित्यकार डा.ए.कीर्तिवर्धन ऩे किया । इस कार्यक्रम के संयोजक दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल थे| तथा अध्यक्षता डा. के. के. तिवारी ने किया।<br />इस परिचर्चा में डा. हरिसिंह पाल (निदेशक-प्रसार भारती), प्रो(डा)हरीश अरोडा, प्रो.(डा.)रवि शर्मा,श्री प्रदीप गर्ग पराग (फरीदाबाद),श्री गाफिल स्वामी(अलीगढ),डा. अजय कुमार भटनागर(मुज्जफर नगर),श्री नासाद औरंगावादी(समस्तीपुर,बिहार), दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल,डा. ए.कीर्तिबर्धन (मुज्जफर नगर),श्री प्रकाश लखानी एवं श्री एन.एल.गोसाईं(फरीदाबाद) आदि १६ विद्वानों ने भाग लिया। सभी ने बुजुर्गो की दशा एवं दिशा पर बोलते हुए कहा कि आज के हालात के लिए स्वयं बुजुर्ग ही जिम्मेदार है क्योंकि बालपन में बच्चों पर ध्यान नही देते जिससे उसे सांस्कारिक घुटी नही मिल पाते है पर बच्चों से उम्मीदों को पाल लेना ही सबसे बडी समस्या की जड बनती जा रही है। श्री लाल बिहारी लाल ने कम्युनिकेशन गैप की पीडा को कुछ यूं कहा कि विरासत संभालने में आजकल के बच्चे भी अपने बाप के भी बाप हो गए हैं।<br />इस अवसर पर डा. आर. कान्त, डा. सत्य प्रकाश पाठक, श्री मनोज गुप्ता, ,श्री के.पी.सिंह कुवंर,श्री राकेश कन्नौजी,श्री धुरेन्द्र राय, श्री बरुण सर, लोक गायिका सीमा तिवारी, सहित अनेक लेखक एवं सामाज सेवी मौयूद थे।अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संस्था की डॉ आर कान्त जी द्वारा किया गया|<br />कार्यक्रम के उपरांत संस्था की और से जलपान की व्यस्था की गई|<br />सोनू गुप्ता<br />(अध्यक्ष) 09868163073a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-33286713451588327302011-04-15T12:12:00.000-07:002011-04-15T12:13:11.740-07:00खुदा न बनाओखुदा ना बनाओ<br />मेरे मालिक!<br />मुझे इंसान बना रहने दो<br />खुदा ना बनाओ<br />बना कर खुदा मुझको<br />अपने रहम ओ करम से<br />महरूम ना कराओ।<br />पडा रहने दो मुझको<br />गुनाहों के दलदल में<br />ताकि तेरी याद सदा<br />बनी रहे मेरे दिल मे।<br />अपनी रहमत की बरसात<br />मुझ पर करना<br />मुझे आदमी से बढ़ा कर<br />इंसान बनने की ताकत देना।<br />तेरी हिदायतों पर अमल करता रहूँ<br />मुझे इतनी कुव्वत देना।<br />तेरे जहाँ को प्यार कर सकूं<br />मुझे इतनी सिफत देना।<br /><br />मेरे मालिक!<br />मुझे खुदा ना बनाना<br />बस इंसान बने रहने देना।<br />मुझे डर है कहीं<br />बनकर खुदा<br />मैं खुदा को ना भूल जाऊँ<br />खुदा बनने के गुरुर मे<br />गुनाह करता चला जाऊँ।<br /><br />मेरे मालिक!<br />अपनी मेहरबानी से<br />मुझे खुदा ना बनाना।<br />सिर्फ़ अपनी नजरें इनायत से<br />मुझे इंसान बनाना।<br />gustaakhi ना होने पाये मुझसे<br />किसी इंसान की शान मे<br />मेहरबानी हो तेरी मुझ पर<br />बना रहूँ इंसान मैं.<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />box.net/kirtivardhan<br />kirtivardhan.blogspot.com<br />09911323732a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-47149874125164596642011-04-11T22:44:00.000-07:002011-04-11T22:45:06.526-07:00परिचर्चाजतन से ओढ़ी चदरिया पर परिचर्चा<br /><br />लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच के तत्वाधान मे 'जतन से ओढ़ी चदरिया' जो की डॉ अ कीर्तिवर्धन द्वारा बुजुर्गों की दशा और दिशा पर आधारित ग्रन्थ है,पर दिनांक २४ अप्रैल को परिचर्चा का आयोजन किया गया है|<br />परिचर्चा मे स्थनीय निगम पार्षद श्री महेश अवाना ,पत्रकार श्री शिव कुमार प्रेमी,श्री देवेन्द्र उपाध्याय,श्री तुलसी नीलकंठ,गाजियाबाद ,श्री प्रदीप गर्ग पराग-फरीदाबाद,श्री गाफिल स्वामी-बुलंदशहर, श्री अजय कुमार भटनागर-मुज़फ्फरनगर,श्री अनुराग मिश्र गैर-बिजनौर,डॉ रवि शर्मा-दिल्ली,डॉ अ कीर्तिवर्धन-मुज़फ्फरनगर,डॉ महेश अरोरा-दिल्ली,श्री लाल बिहारी लाल-बदरपुर,श्री विनोद बब्बर-संपादक-राष्ट्र किंकर-दिल्ली तथा अन्य वक्ता भाग लेंगे|<br />आप सदर आमंत्रित हैं|आप अपने विचार भी भेज सकते हैं|<br />स्थान -अल्फा शैक्षणिक संसथान,स्कूल रोड,मीठा पुर,संतोषी माता के मंदिर के पास,बदरपुर,दिल्ली<br />समय -शाम 4 बजे से<br />संपर्क -9868163073,९९११३२३७३२<br />निवेदक-दिल्ली रत्न-लाल बिहारी लाल तथा डॉ अ कीर्तिवर्धनa.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-2543714589132461022011-04-02T02:11:00.000-07:002011-04-02T02:12:20.203-07:00सम्मान समाचारसमस्तीपुर- मुज़फ्फरनगर उत्तरप्रदेश के जाने माने कवि,लेखक,समीक्षक डॉ अ कीर्तिवर्धन को भारतीय साहित्यकार संसद ,समस्तीपुर द्वारा उनकी कालजयी कृति "सुबह-सवेरे " के लिए वर्ष २०११ का "माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय शिखर सम्मान" प्रदान किया गया| समस्तीपुर के नगर हॉल मे आयोजित भव्य कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री जिया लाल जी ने की तथा डॉ शैलेश पंडित ने समारोह क उदघाटन किया| शिखर अतिथि के रूप मे जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार डॉ स्वामी श्री श्यामानंद सरस्वती जी रहे| विदित हो कि डॉ अ कीर्तिवर्धन की अब तक ६ पुस्तकें मेरी उड़ान,सच्चाई का परिचय पत्र,मुझे इंसान बना दो,दलित चेतना के उभरते स्वर,जतन से ओढ़ी चदरिया प्रकाशित हो चुकी हैं |उनके चर्चित आलेखों का संग्रह "चिंतन बिंदु" प्रकाशनाधीन है| डॉ अ कीर्तिवर्धन के साहित्यक योगदान को द्रष्टिगत करते हुए दिल्ली की प्रतिष्ठित पत्रिका "कल्पान्त" मासिक ने अपना जून २०११ का अंक भी डॉ कीर्तिवर्धन पर केन्द्रित करने का निर्णय लिया है| आप सबसे अनुरोध है की आप डॉ अ कीर्तिवर्धन के विषय मे अपने विचार पत्रिका के अतिथि संपादक डॉ रवि शर्मा ,"सुर सदन", डब्लू -जेड १९८७,रानी बाग़ ,दिल्ली-११००३४ पर ३०-०४-२०११ से पूर्व भेजने की कृपा करें ताकि कल्पान्त के विशेषांक को सम्पूर्णता के साथ प्रकाशित किया जा सके|<br />डॉ अशोक सिन्हा,<br />समस्तीपुरa.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-57904488313011056762011-04-01T07:03:00.001-07:002011-04-01T07:03:24.724-07:00समाचारसमस्तीपुर- मुज़फ्फरनगर उत्तरप्रदेश के जाने माने कवि,लेखक,समीक्षक डॉ अ कीर्तिवर्धन को भारतीय साहित्यकार संसद ,समस्तीपुर द्वारा उनकी कालजयी कृति "सुबह-सवेरे " के लिए वर्ष २०११ का "माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय शिखर सम्मान" प्रदान किया गया| समस्तीपुर के नगर हॉल मे आयोजित भव्य कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री जिया लाल जी ने की तथा डॉ शैलेश पंडित ने समारोह क उदघाटन किया| शिखर अतिथि के रूप मे जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार डॉ स्वामी श्री श्यामानंद सरस्वती जी रहे| विदित हो कि डॉ अ कीर्तिवर्धन की अब तक ६ पुस्तकें मेरी उड़ान,सच्चाई का परिचय पत्र,मुझे इंसान बना दो,दलित चेतना के उभरते स्वर,जतन से ओढ़ी चदरिया प्रकाशित हो चुकी हैं |उनके चर्चित आलेखों का संग्रह "चिंतन बिंदु" प्रकाशनाधीन है| डॉ अ कीर्तिवर्धन के साहित्यक योगदान को द्रष्टिगत करते हुए दिल्ली की प्रतिष्ठित पत्रिका "कल्पान्त" मासिक ने अपना जून २०११ का अंक भी डॉ कीर्तिवर्धन पर केन्द्रित करने का निर्णय लिया है| आप सबसे अनुरोध है की आप डॉ अ कीर्तिवर्धन के विषय मे अपने विचार पत्रिका के अतिथि संपादक डॉ रवि शर्मा ,"सुर सदन", डब्लू -जेड १९८७,रानी बाग़ ,दिल्ली-११००३४ पर ३०-०४-२०११ से पूर्व भेजने की कृपा करें ताकि कल्पान्त के विशेषांक को सम्पूर्णता के साथ प्रकाशित किया जा सके| डॉ अशोक सिन्हा, समस्तीपुर<br /> samaydarpan.com/magazine/march2011/emagazine.अस्प्क्स पर भी आप मुझे पढ़ सकते हैं.यह एक अच्छी पत्रिका है आप भी इससे जुड़ें.<br /><br />-- <br />Dr. A.Kirti vardhan<br />09911323732<br />http://kirtivardhan.blogspot.com/a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-78532424055580827302011-03-12T22:42:00.000-08:002011-03-12T22:43:03.666-08:00कल्पान्त का विशेषांकदोस्तों,<br />आज आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि साहित्य कि प्रतिष्ठित पत्रिका "कल्पान्त" त्रि मासिक द्वारा एक अंक इस नाचीज पर भी केन्द्रित करने का निर्णय लिया है|आप सबसे विनम्र निवेदन है कि अपनी शुभकामनायें ,सन्देश,या मेरी कविताओं,लेख पर अपने विचार शीघ्र भेजने कि कृपा करें,ताकि विशेषांक मे स्थान दिया जा सके|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />विद्या लक्ष्मी निकेतन<br />५३-महालक्ष्मी एन्क्लेव <br />जानसठ रोड<br />मुज़फ्फरनगर-251001<br /><br />-- <br /><br />Dr. A.Kirti vardhan<br />09911323732<br />http://kirtivardhan.blogspot.com/a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-27575795283070109112011-02-27T07:03:00.000-08:002011-02-27T07:04:01.188-08:00तीन बातें__-तीन बातें_<br />सिमट रहा है------नदी का नीर<br /> स्त्री का चीर <br /> मन का धीर|<br />फ़ैल रहा है-------भ्रष्टाचार का जाल<br /> मानव का दुर्व्यवहार <br /> औरत पर अत्याचार|<br />कम हो रहा है--बच्चों मे सदाचार <br /> परिवार मे प्यार<br /> रिश्तों का संसार|<br />बढ़ रहा है------नशे का व्यापार<br /> धर्मान्धता का बुखार<br /> शिक्षा का कारोबार |<br />बचाना होगा---नेताओं के भाषण से<br /> मुफ्त के राशन से<br /> सरकारी कुशासन से |<br />मिटानी होगी--अश्त्रों-शस्त्रों कि जड़ <br /> आतंकवाद कि हद<br /> पाकिस्तान कि सरहद|<br />Dr. A.Kirti vardhan<br />09911323732<br />http://kirtivardhan.blogspot.com/a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-61290592560471726102011-02-26T08:15:00.000-08:002011-02-26T08:16:25.944-08:00खुद का सायाकभी-कभी खुद का साया देखकर भी<br />मैं डर जाता हूँ<br />धूप कि क्या बात करूँ<br />छाया मे भी निकालने से घबराता हूँ|<br />आतंकवाद ने जब से अपनी बाहें फैलाई हैं<br />नेताओं से उनकी साजिश <br />सुर्खी मे आई है<br />मैं बारूद कि गंध कि क्या बात करूँ<br />सुगंध के व्यापर से भी घबराता हूँ<br />अब मैं ख्वाबों मे भी<br />संभल संभल कर चलता हूँ,<br />मैं खुद का साया देखकर भी घबराता हूँ|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२<br />kirtivardhan.blogspot.coma.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-26505763030449000272011-02-15T08:17:00.000-08:002011-02-15T08:18:10.697-08:00समंदरसमंदर सी गहराई मन में हो<br />ज्ञान के मोती तुम्हारे धन में हों<br />अथाह जल भरा जैसे सागर में<br />मानवता हिलोरें ले ,जीवन में हो ।<br /><br />खारापन समंदर का न कुछ काम आयेगा<br />प्यासा मर रहा मानव,प्यास कैसे बुझायेगा<br />भटकोगे समंदर में ,तो मंजिल कैसे पाओगे<br />शरण प्रभु की आ जाओ ,किनारा भी मिल जायेगा।<br /><br />समंदर फैंकता बाहर गन्दगी अवशेष को<br />मन बनाएं आओ निर्मल दूर कर निज दोष को<br />विशालता सागर सी अपने जीवन में भरे<br />करें जीवन समर्पित उत्थान में निज देश को।<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन <br />09911323732<br />kirtivardhan.blogspot.coma.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-50883659250379879102011-02-05T07:07:00.001-08:002011-02-05T07:07:30.811-08:00अग्नि की उड़ानआज आपके पास अपनी प्रथम पुस्तक "मेरी उड़ान" से एक कविता भेज रहा हूँ|यह रचना हमारे देश के सबसे लोक प्रिय राष्ट्रपति माननीय अब्दुल कलाम साहब के जीवन पर आधारित है|आप अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएँ| धन्यवाद्| अग्नि की उड़ान............<br />इतिहास के पन्नों मे,<br />चंद ही लोग<br />जमीन से उठकर<br />आकाश पर छाये हैं<br />अन्यथा वही राजा महाराजा <br />रंग रूप बदलकर<br />सत्ता शीर्ष पर छाये हैं|<br /><br />आप धरा पुत्र हैं,<br />आम आदमी के <br />सामूहिक सुख दुःख के<br />प्रतीक हैं|<br />आपने देखा है<br />जीवन को करीब से<br />शिक्षा का मकसद ,सिखा है रकीब से,<br />पंडित से सीखी,ज्ञान की बातें,<br />मौलवी से पढ़ी,कुरआन की आयतें,<br />परिंदों से सिखा,आज़ादी का मतलब,<br />"पक्षी-शास्त्री "से सिखा,धर्म-निरपेक्षता का अर्थ|<br /><br />सच मानों जब से मैं <br />अग्नि मे उड़ा हूँ,<br />मैंने पाया अपने अंदर<br />एक विस्तृत आकाश,<br />जहाँ छुपा था<br />मेरे बचपन के सपने का राज,<br />हर इंसान मे देश भक्ति का जज्बा होगा,<br />सम्पूर्ण विश्व पर<br />मानवता का कब्जा होगा|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-29167123715264105052011-02-03T07:28:00.000-08:002011-02-03T07:29:10.452-08:00कविताक्या कविता लिखना आसान है?इस सवाल का जवाब मैंने स्वयं के अनुभव से तलाशने का प्रयास किया है|आप की प्रतिक्रिया चाहता हूँ|<br />------कविता-------- <br />जब कभी सोचता हूँ कविता लिखना<br />भाव नहीं आते हैं,<br />गहरे समंदर मे,सीप के मोती से<br />कहीं खो जाते हैं|<br />कभी-कभी अचानक <br />कविता<br />मेरे जहन मे मचल जाती है,<br />मन आतुर कर जाती है|<br />यदि तुरंत ही विचारों को<br />लेखनी से नहीं बांधा,तो<br />लहर के सामान आकर,<br />फिर वापस चली जाती है|<br />कविता<br />बड़ी चंचला है|<br />कविता मन के जंगल मे<br />हिरणी सी कुलाचें भरती,<br />कभी कोयक सी कूकती,<br />तो कभी फुदकती<br />मन के आँगन मे <br />सोन चिरैया सी|<br />कविता<br />तभी कविता बन पाती<br />जब मन के आँगन मे<br />फुदकते भावों को<br />लेखनी से कागज पर कैद करता हूँ|<br />मैं जानता हूँ कैद करने से<br />आज़ादी ख़त्म हो जाती है|<br />पर<br />कविता की आज़ादी शायद<br />लेखनी मे बंध कर ही<br />नया जीवन पाती है|<br />कविता<br />मेरे पन्नों मे सिमट जाती है,<br />फिर कविता, किताब मे छप कर<br />जीवन्त हो जाती है|<br />कविता<br />वात्सल्य बन जाती है|<br />कविता<br />प्रेरणा बन जाती है|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन <br />०९९११३२३७३२<br />http://kirtivardhan.blogspot.com/a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-66232871646849119592011-02-02T23:38:00.001-08:002011-02-02T23:38:30.376-08:00आओ बच्चों खेलें खेलआओ बच्चों खेलें खेल<br />दोस्तों,इस बाल कविता पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ|<br /><br />आओ बच्चों खेलें खेल<br />चलो बनायें मिलकर रेल|<br />रामू तुम इंजन बन जाना,<br />सबसे आगे दौड़ लगाना|<br />सीता,गीता,सोनू,मोनू,<br />सबको तुम संग ले जाना|<br />ये सब मिल डिब्बे बन जाएँ,<br />दीपू तुम झंडी दिखलाना|<br />गाँव शहर से बढ़ती जाती,<br />देश प्रेम की अलख जगाती|<br />छुक-छुक,छुक-छुक चलती रेल,<br />आप बच्चों खेलें खेल|<br />सिखलाती है हमको रेल,<br />मिलकर रहते,बढ़ता मेल|<br />देश हमारा बहुत विशाल,<br />दिखलाती है हमको रेल|<br />आओ बच्चों खेलें खेल,<br />चलो बनायें मिलकर रेल|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-29838243143439214382011-02-02T21:19:00.001-08:002011-02-02T21:19:29.978-08:00जनसंख्या निमंत्रणजनसंख्या नियंत्रण <br />जनसंख्या नियंत्रण पर<br />उन्होंने सोच विचार किया<br />समलेंगिक विवाह द्वारा<br />समस्या का उपचार किया|<br /><br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />09911323732a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-31905117902716139022011-01-29T08:19:00.001-08:002011-01-29T08:19:52.549-08:00लिखना है तोमित्रों,आपके पास नई कविता भेज रहा हूँ,कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ |<br /> लिखना है तो..........<br />लिखना है तो रामायण का सार लिखो<br />मर्यादा हुई तार-तार,उपचार लिखो,<br />लिखना है तो मानवता की बात लिखो<br />किया गया उपकार,तुम साभार लिखो|<br /><br />आतंकवाद ने अपनी बाहें फैलायीं हैं,<br />जातिवाद समस्या बनकर छाई है,<br />किसने फैलाया यह सब,विचार लिखो,<br />फैलाने वालों का बहिष्कार,प्रचार लिखो|<br /><br />नेताओं ने आज देश को लूटा है,<br />अधिकारी हैं भ्रष्ट,बाबू भी नहीं छुटा है,<br />भ्रष्टाचार ने जड़ें अमरबेल सी फैलाई हैं,<br />अमरबेल का करना नाश,उपचार लिखो|<br /><br />लिखना है तो गीता का सार लिखो,<br />कर्मयोग प्रधान नहीं फल की चाह जगे<br />मोह ग्रस्त ध्रतराष्ट्र के कुल का नाश लिखो,<br />धर्म सदा विजयी,सच का साथ लिखो|<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-70451825499621443852011-01-26T04:41:00.000-08:002011-01-26T04:42:12.564-08:00खुदा ना बनाओखुदा ना बनाओ <br />मेरे मालिक!<br />मुझे इंसान बना रहने दो<br />खुदा ना बनाओ<br />बना कर खुदा मुझको<br />अपने रहम ओ करम से<br />महरूम ना कराओ।<br />पडा रहने दो मुझको<br />गुनाहों के दलदल में<br />ताकि तेरी याद सदा<br />बनी रहे मेरे दिल मे।<br />अपनी रहमत की बरसात<br />मुझ पर करना<br />मुझे आदमी से बढ़ा कर<br />इंसान बनने की ताकत देना।<br />तेरी हिदायतों पर अमल करता रहूँ<br />मुझे इतनी कुव्वत देना।<br />तेरे जहाँ को प्यार कर सकूं <br />मुझे इतनी सिफत देना।<br /><br />मेरे मालिक!<br />मुझे खुदा ना बनाना<br />बस इंसान बने रहने देना।<br />मुझे डर है कहीं <br />बनकर खुदा<br />मैं खुदा को ना भूल जाऊँ <br />खुदा बनने के गरूर मे <br />गुनाह करता चला जाऊँ।<br /><br />मेरे मालिक!<br />अपनी मेहरबानी से <br />मुझे खुदा ना बनाना।<br />सिर्फ़ अपनी नजरें इनायत से <br />मुझे इंसान बनाना।<br />गुस्ताखी ना होने पाये मुझसे <br />किसी इंसान की शान मे<br />मेहरबानी हो तेरी मुझ पर<br />बना रहूँ इंसान मैं.<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />09911323732 <br /> post scrap cancela.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-65504829636847666832011-01-26T04:36:00.001-08:002011-01-26T04:36:26.632-08:00गतिशीलगतिशील <br /><br />गतिशील होना<br />जीवन का प्रतीक है <br />जब की <br />स्थिर हो जाना<br />मरे हुए का <br />निः शब्द गीत है.<br />फिर भी<br />अच्छा लगता है<br />कभी कभी<br />स्वयं को स्थिर कर देना<br />बिस्तर की बाहों मे<br />किसी पुतले की तरह<br />अपने आपको<br />निश्छल छोड़ देना<br />फिर<br />शांत भावः से<br />अन्तरिक्ष मे देखते रहना.<br />निः शब्द अन्तरिक्ष के गीत को<br />आत्मा की गहरे से सुनना .<br />उस पल <br />जैसे<br />साँसों की डोर छूट जाती है<br />स्थिर शांत शरीर मे<br />मृत्यु का बोध कराती है<br />आत्मा<br />अन्तरिक्ष मे नए रहस्य <br />खोज रही होती है.<br />किसी की आहट मात्र <br />मेरी तंद्रा को<br />भंग कर देती है<br />मुझे<br />पुनः <br />जीवित होने का <br />अहसास दिलाती है. <br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />09911323732a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-83016803711223525202010-09-10T08:14:00.000-07:002010-09-10T08:15:21.578-07:00मेरा दिल है बड़ा उदासमित्र ,आपके पास एक छोटी बच्ची जो हॉस्टल मे भेज दी गई है उसका दर्द भेज रहा हूँ आपकी प्रतिक्रिया चाहता हूँ.<br /><br />मेरा दिल है बड़ा उदास.<br />आओ पापा मेरे पास<br />मेरा दिल है बड़ा उदास<br />मम्मी की भी याद सताती <br />भैया को मैं भूल न पाती.<br />तुमसे मैं कुछ न मांगूगी <br />पढने मे प्रथम आउंगी<br />रखो मुझको अपने पास <br />मेरा दिल है बड़ा उदास.<br />नहीं सहेली संग खेलूंगी<br />गुडिया को भी बंद कर दूंगी<br />बैठूंगी भैया के पास<br />मेरा दिल है बड़ा उदास.<br />जाओगे जब कल्ब मे आप<br />मम्मी को ले कर के साथ<br />रह लूंगी दादी के पास<br />मेरा दिल है बड़ा उदास.<br />नहीं चाहिए चॉकलेट टाफी <br />नहीं चाहिए मुझको फ्राक<br />मम्मी पापा मुझे चाहिए<br />मेरा दिल है बड़ा उदास.<br />राजा रानी के किस्से <br />भगवान की प्यारी बात<br />दादी हमको रोज सुनाती<br />आती मुझको उनकी याद.<br />बुआ से छोटी करवाना<br />चाचा के संग बाज़ार जाना <br />जिद नहीं मैं कभी करुँगी<br />पापा मुझको घर ले जाना.<br />कहना मानूँ दूध पियूंगी<br />घर की छत पर नहीं चढूँगी <br />घर ले जाओ मुझको पापा <br />हॉस्टल मे मैं नहीं पढूंगी.<br /><br />अ.किर्तिवर्धन<br />09911323732<br />box.net/kirtivardhana.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-627081234024075290.post-45600011060294651922010-08-15T09:08:00.000-07:002010-08-15T09:09:20.192-07:00पाकिस्तानी चाहतपाकिस्तानी चाहत<br />तिल का ताड़ बनाते हैं हम<br />बस अपनी बात सुनते हैं हम<br />हमको क्या लेना आपके जख्मों से<br />बस अपना दर्द सुनाते हैं हम.<br /><br />हमदर्दी पाते हैं महफ़िल मे जाकर हम<br />सौगातें लाते हैं अपना दर्द दिखाकर हम<br />क्या रखा है नंगी सच्चाई बतलाने मे<br />चापलूसी से गैरों मे भी शामिल हो जाते हैं हम.<br />अपनी बातों से दिन को रात जताते हैं हम<br />आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई बताते हैं हम<br />यकीं करता है दुनिया का बादशाह हम पर<br />अपने घर मे आशियाँ उसका बनवाते हैं हम.<br />मुल्क ही नहीं कौमों को भी लड़वाते हैं हम<br />आग लगी गर कहीं हाथ सेकने जाते हैं हम<br />आप यकीं करें या न करें क्या फर्क पड़ता है<br />आतंकवाद से लड़ने के सिरमौर कहाए जाते हैं हम.<br />अपना बस एक ही सिद्धांत बनाते हैं हम<br />सत्ता बस बनी रहे जोड़ तोड़ करते हैं हम<br />बेनजीर या नवाज़ ,मुसर्रफ ,क्या फर्क पड़ता है<br />देश के मुखिया बने रहें जतन लड़ते हैं हम.<br />सच है अपने घर मे बेगाने हो जाएंगे हम<br />दिया आज आशिआना उसको कल मालिक बनायेंगे हम<br />हमें कौन हज़ार साल जिन्दा रहना है<br />इतिहास मे अपना नाम लिखा जाएंगे हम.<br />गुमनामी मे नहीं मरना चाहते हैं हम<br />दुनिया सदा याद करे कुछ ऐसा चाहते हैं हम<br />सच्ची राहों से शोहरत मिला नहीं कराती<br />कड़वी सच्चाई कैसे तुम्हे बताये हम?<br />आतंकवाद के सभी गुटों को पालें हैं हम<br />चीन और अमेरिका को एक साथ साधे हैं हम<br />कभी बताते हिंद को मानवाधिकारों का दुश्मन<br />कभी कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताते हैं हम.<br />इस्लाम का साम्राज्य दुनिया मे चाहते हैं हम<br />उसके भी मुखिया बनना चाहते हैं हम<br />पैगम्बर के बाद किसी को कोई माने<br />ऐसी छवि जग मे अपनी चाहते हैं हम.<br />डॉ अ कीर्तिवर्धन<br />०९९११३२३७३२a.kirtivardhanhttp://www.blogger.com/profile/02513358350518632545noreply@blogger.com0