गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
तिरंगा
तीन रंग मे रंगा हुआ है मेरे देश का झंडा
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा.
इस झंडे की अजब गजब ,तुम्हे सुनाएँ कहानी
केसरिया की शान है जग मे,युगों युगों पुरानी.
संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना हुआ.
शांति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग ही कहलाया.
महावीर ने सत्य अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया
शांत रहे संपूर्ण विश्व,सफ़ेद ध्वज फहराया.
खेती से भारत ने सबको,उन्नति का मार्ग बताया
हरित क्रांति जग मे फैली,हरा रंग है आया.
वसुधैव कुटुंब मे कोई,कहीं रहे न भूखा
मानवता जन जन मे व्यापे,नहीं बाढ़,नहीं सुखा.
अशोक महान हुआ दुनिया मे,धर्म सन्देश सुनाया
सावधान चौबीसों घंटे,चक्र का महत्व बताया.
नीले रंग का बना चक्र,हमको संदेशा देता
नील गगन से बनो विशाल,सदा प्रेरणा भरता.
तिरंगा है शान हमारी,आंच न इस पर आये
अध्यातम भारत की दें,विजय धवज फहराए.
डॉ.अ.कीर्तिवर्धन
09911323
kirtivardhan.blogspot.com
a.kirtivardhan@gmail.com
रविवार, 24 जनवरी 2010
रविवार, 17 जनवरी 2010
बड़ा आदमी
बड़ा आदमी
मैंने सोचा और विचारा
बड़ा आदमी बन जाऊं
टाटा और अम्बानी जैसा
पैसे से तौला जाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
सी .ऍम.,पी.ऍम. बन जाऊं
देश विदेश मे घुमू हर पल
वी आई पी कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
शाहरुख जैसा बन जाऊं
ऐश्वर्या से गल बहिआं हों
हीरो शीरो कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
धोनी जैसा बन जाऊं
चौकों -छक्कों की बारिश हो
विज्ञापन मे छा जाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
बड़ा आदमी बन जाऊं
टाटा और अम्बानी जैसा
पैसे से तौला जाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
सी .ऍम.,पी.ऍम. बन जाऊं
देश विदेश मे घुमू हर पल
वी आई पी कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
शाहरुख जैसा बन जाऊं
ऐश्वर्या से गल बहिआं हों
हीरो शीरो कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
धोनी जैसा बन जाऊं
चौकों -छक्कों की बारिश हो
विज्ञापन मे छा जाऊं.
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
कवायद
कवायद
जब जब जिंदगी में हादसे देखा करता हूँ
भगवान में अधिक विश्वास करने लगता हूँ
जाने किस गुनाह की सजा किसको मिली है
मैं संभल संभल कर चलने लगता हूँ.
क्या है मकसद जीने का,मैं नहीं जानता
पर गुनाहों से तौबा किया करता हूँ.
उलझ कर दुनियां के झमेलों में,इंसान न बन सका
पर आदमी बनने की कवायद किया करता हूँ.
आदमी मिलना भी नहीं आसान यहाँ है
दरिंदों की भीड़ में आदमी खोजा करता हूँ.
जानवरों को देते हैं वो गालियाँ अक्सर
मैं जानवरों में भी इन्सान खोजा करता हूँ.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
www.samaydarpan.com (e magazine)
जब जब जिंदगी में हादसे देखा करता हूँ
भगवान में अधिक विश्वास करने लगता हूँ
जाने किस गुनाह की सजा किसको मिली है
मैं संभल संभल कर चलने लगता हूँ.
क्या है मकसद जीने का,मैं नहीं जानता
पर गुनाहों से तौबा किया करता हूँ.
उलझ कर दुनियां के झमेलों में,इंसान न बन सका
पर आदमी बनने की कवायद किया करता हूँ.
आदमी मिलना भी नहीं आसान यहाँ है
दरिंदों की भीड़ में आदमी खोजा करता हूँ.
जानवरों को देते हैं वो गालियाँ अक्सर
मैं जानवरों में भी इन्सान खोजा करता हूँ.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
www.samaydarpan.com (e magazine)
सदस्यता लें
संदेश (Atom)