मुखौटों कि दुनिया
मुखौटों कि दुनिया मे रहता है आदमी,
मुखौटों पर मुखौटें लगता है आदमी|
बार बार बदलकर देखता है मुखौटा,
फिर नया मुखौटा लगता है आदमी|
मुखौटों के खेल मे माहिर है आदमी,
गिरगिट को भी रंग दिखाता है आदमी|
शैतान भी लगाकर इंसानियत का मुखौटा,
आदमी को छलने को तैयार है आदमी|
मजहब के ठेकेदार भी अब लगाते है मुखौटे
देते हैं पैगाम,बस मरता है आदमी|
लगाने लगे मुखौटे जब देश के नेता,
मुखौटों के जाल मे,फंस गया आदमी|
जाति,धर्म का जब लगाया मुखौटा,
आदमी का दुश्मन बन गया है आदमी|
देखकर नेताओं का मुखौटा अनोखा,
हैरान और परेशान रह गया है आदमी|
कभी भूल जाता है मुखौटा बदलना आदमी
शै और मात मे फंस जाता है आदमी|
मुखौटों के खेल मे इतना उलझ गया आदमी
खुद की ही पहचान भूल गया है आदमी|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
9911323732
a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
शनिवार, 21 मई 2011
गुरुवार, 5 मई 2011
शब्दों में
-------शब्दों में ------
मैंने शब्दों में
भगवान को देखा
शैतान को देखा
आदमी तो बहुत देखे
पर
इंसान कोई कोई देखा।
इन्ही शब्दों में
मैंने प्यार को देखा
कदम कदम पर अंहकार भी देखा
धर्मात्मा तो बहुत देखे
पर
मानवता की खातिर
मददगार कोई कोई देखा।
इन्ही शब्दों में
मैंने चाह देखी
भगवान् पाने की
बुलंदियों पर जाने की
गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे
पर गिरते को उठाने वाला
कोई कोई देखा।
इन्ही शब्दों में
भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा
नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा
पर निर्लजता पर चोट करते
कोई कोई देखा।
इन्हीशब्दों में
कामना करता हूँ ईश्वर से
मुझे शक्ति दे
लेखनी मेरी चलती रहे
पर पीडा में लिखती रहे
पाप का भागी मैं बनूँ
यश का भागी ईश्वर रहे.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732
a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
मैंने शब्दों में
भगवान को देखा
शैतान को देखा
आदमी तो बहुत देखे
पर
इंसान कोई कोई देखा।
इन्ही शब्दों में
मैंने प्यार को देखा
कदम कदम पर अंहकार भी देखा
धर्मात्मा तो बहुत देखे
पर
मानवता की खातिर
मददगार कोई कोई देखा।
इन्ही शब्दों में
मैंने चाह देखी
भगवान् पाने की
बुलंदियों पर जाने की
गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे
पर गिरते को उठाने वाला
कोई कोई देखा।
इन्ही शब्दों में
भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा
नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा
पर निर्लजता पर चोट करते
कोई कोई देखा।
इन्हीशब्दों में
कामना करता हूँ ईश्वर से
मुझे शक्ति दे
लेखनी मेरी चलती रहे
पर पीडा में लिखती रहे
पाप का भागी मैं बनूँ
यश का भागी ईश्वर रहे.
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