रविवार, 15 अगस्त 2010

पाकिस्तानी चाहत

पाकिस्तानी चाहत
तिल का ताड़ बनाते हैं हम
बस अपनी बात सुनते हैं हम
हमको क्या लेना आपके जख्मों से
बस अपना दर्द सुनाते हैं हम.

हमदर्दी पाते हैं महफ़िल मे जाकर हम
सौगातें लाते हैं अपना दर्द दिखाकर हम
क्या रखा है नंगी सच्चाई बतलाने मे
चापलूसी से गैरों मे भी शामिल हो जाते हैं हम.
अपनी बातों से दिन को रात जताते हैं हम
आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई बताते हैं हम
यकीं करता है दुनिया का बादशाह हम पर
अपने घर मे आशियाँ उसका बनवाते हैं हम.
मुल्क ही नहीं कौमों को भी लड़वाते हैं हम
आग लगी गर कहीं हाथ सेकने जाते हैं हम
आप यकीं करें या न करें क्या फर्क पड़ता है
आतंकवाद से लड़ने के सिरमौर कहाए जाते हैं हम.
अपना बस एक ही सिद्धांत बनाते हैं हम
सत्ता बस बनी रहे जोड़ तोड़ करते हैं हम
बेनजीर या नवाज़ ,मुसर्रफ ,क्या फर्क पड़ता है
देश के मुखिया बने रहें जतन लड़ते हैं हम.
सच है अपने घर मे बेगाने हो जाएंगे हम
दिया आज आशिआना उसको कल मालिक बनायेंगे हम
हमें कौन हज़ार साल जिन्दा रहना है
इतिहास मे अपना नाम लिखा जाएंगे हम.
गुमनामी मे नहीं मरना चाहते हैं हम
दुनिया सदा याद करे कुछ ऐसा चाहते हैं हम
सच्ची राहों से शोहरत मिला नहीं कराती
कड़वी सच्चाई कैसे तुम्हे बताये हम?
आतंकवाद के सभी गुटों को पालें हैं हम
चीन और अमेरिका को एक साथ साधे हैं हम
कभी बताते हिंद को मानवाधिकारों का दुश्मन
कभी कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताते हैं हम.
इस्लाम का साम्राज्य दुनिया मे चाहते हैं हम
उसके भी मुखिया बनना चाहते हैं हम
पैगम्बर के बाद किसी को कोई माने
ऐसी छवि जग मे अपनी चाहते हैं हम.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

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