शनिवार, 29 जनवरी 2011

लिखना है तो

मित्रों,आपके पास नई कविता भेज रहा हूँ,कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ |
लिखना है तो..........
लिखना है तो रामायण का सार लिखो
मर्यादा हुई तार-तार,उपचार लिखो,
लिखना है तो मानवता की बात लिखो
किया गया उपकार,तुम साभार लिखो|

आतंकवाद ने अपनी बाहें फैलायीं हैं,
जातिवाद समस्या बनकर छाई है,
किसने फैलाया यह सब,विचार लिखो,
फैलाने वालों का बहिष्कार,प्रचार लिखो|

नेताओं ने आज देश को लूटा है,
अधिकारी हैं भ्रष्ट,बाबू भी नहीं छुटा है,
भ्रष्टाचार ने जड़ें अमरबेल सी फैलाई हैं,
अमरबेल का करना नाश,उपचार लिखो|

लिखना है तो गीता का सार लिखो,
कर्मयोग प्रधान नहीं फल की चाह जगे
मोह ग्रस्त ध्रतराष्ट्र के कुल का नाश लिखो,
धर्म सदा विजयी,सच का साथ लिखो|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

बुधवार, 26 जनवरी 2011

खुदा ना बनाओ

खुदा ना बनाओ
मेरे मालिक!
मुझे इंसान बना रहने दो
खुदा ना बनाओ
बना कर खुदा मुझको
अपने रहम ओ करम से
महरूम ना कराओ।
पडा रहने दो मुझको
गुनाहों के दलदल में
ताकि तेरी याद सदा
बनी रहे मेरे दिल मे।
अपनी रहमत की बरसात
मुझ पर करना
मुझे आदमी से बढ़ा कर
इंसान बनने की ताकत देना।
तेरी हिदायतों पर अमल करता रहूँ
मुझे इतनी कुव्वत देना।
तेरे जहाँ को प्यार कर सकूं
मुझे इतनी सिफत देना।

मेरे मालिक!
मुझे खुदा ना बनाना
बस इंसान बने रहने देना।
मुझे डर है कहीं
बनकर खुदा
मैं खुदा को ना भूल जाऊँ
खुदा बनने के गरूर मे
गुनाह करता चला जाऊँ।

मेरे मालिक!
अपनी मेहरबानी से
मुझे खुदा ना बनाना।
सिर्फ़ अपनी नजरें इनायत से
मुझे इंसान बनाना।
गुस्ताखी ना होने पाये मुझसे
किसी इंसान की शान मे
मेहरबानी हो तेरी मुझ पर
बना रहूँ इंसान मैं.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732
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गतिशील

गतिशील

गतिशील होना
जीवन का प्रतीक है
जब की
स्थिर हो जाना
मरे हुए का
निः शब्द गीत है.
फिर भी
अच्छा लगता है
कभी कभी
स्वयं को स्थिर कर देना
बिस्तर की बाहों मे
किसी पुतले की तरह
अपने आपको
निश्छल छोड़ देना
फिर
शांत भावः से
अन्तरिक्ष मे देखते रहना.
निः शब्द अन्तरिक्ष के गीत को
आत्मा की गहरे से सुनना .
उस पल
जैसे
साँसों की डोर छूट जाती है
स्थिर शांत शरीर मे
मृत्यु का बोध कराती है
आत्मा
अन्तरिक्ष मे नए रहस्य
खोज रही होती है.
किसी की आहट मात्र
मेरी तंद्रा को
भंग कर देती है
मुझे
पुनः
जीवित होने का
अहसास दिलाती है.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732